शनिवार, 17 अप्रैल 2010

मैं ध्रतराष्ट्र हूँ

मुझे दुबारा इस धरती पर आना पड़ा। वजह साफ़ है । आज भारत में कौरव चारों तरफ फ़ैल चुके हैं और अपनी मनमानियां कर रहे हैं। मैं इनका पिता हूँ अतः इनकी मानसिकता को अच्छी तरह से समझता हूँ और इनके मंसूबों को सबके सामने बेनकाब कर सकता हूँ।

पिछली बार मुझसे कुछ गलतियाँ हो गयीं थी। तब मैं आँखों से अँधा होने के साथ साथ मन से भी अँधा हो गया था। तब मैं सही और गलत में भेद नहीं कर पाया था। सत्य और असत्य को पहचान नहीं पाया था। पुत्र प्रेम में पड़कर मैंने सत्य के मार्ग पर चल रहे पांडवों के साथ हो रहे अन्याय का मूक रहकर समर्थन किया।

पर इस बार मैं ऐसा नहीं करूँगा। जहाँ भी असत्य होगा, बेईमानी होगी, बुराई होगी, देशद्रोह होगा मैं उसका विरोध मुखरित स्वर में करूँगा। इस कारण मैंने इस बार हस्तिनापुर को त्याग कर इन्द्रप्रस्थ में रहने का निर्णय किया है।

मेरे इस कार्य में संजय अपनी दिव्या दृष्टि के साथ मेरी सहायता करने के लिए तैयार हो गए हैं।

अब बस संजय का इंतजार है, उनके आने पर ही मैं अपना कार्यकर्म शुरू कर पाउँगा। अभी तो सिर्फ इंतजार...इंतजार...इन्तजार...

(एक बात और कहना चाहता हूँ की मैं अपने नाम को हिंदी में सही ढंग से नहीं लिख पा रहा हूँ। क्या कोई इस अंधे की मदद करेंगा.)

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